1. विवाद की शुरुआत
हाल के लोकसभा चुनाव और कई राज्यों में विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस और विपक्षी दलों ने गंभीर आरोप लगाए कि मतदाता सूची में गड़बड़ी कर वोट चोरी की गई। कांग्रेस का आरोप है कि लाखों मतदाताओं के नाम लिस्ट से गायब कर दिए गए और कई फर्जी नाम जोड़े गए, जिससे चुनावी नतीजों को प्रभावित किया गया।
2. राहुल गांधी का सीधा हमला
राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि यह सिर्फ एक चुनावी गड़बड़ी नहीं बल्कि लोकतंत्र पर सीधा हमला है।
उनका कहना है कि बीजेपी ने चुनाव आयोग की मदद से वोटिंग पैटर्न में हेरफेर किया।
उन्होंने आंकड़े पेश करते हुए कहा कि महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में लाखों नाम गायब हुए, जबकि वहीं फर्जी वोटर जोड़े गए।
3. “वोट चोरी” अभियान की शुरुआत
राहुल गांधी ने इस मुद्दे को देशव्यापी आंदोलन में बदलने के लिए VoteChori.in नामक वेबसाइट लॉन्च की।
इस वेबसाइट पर लोग अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
उन्होंने एक मिस्ड कॉल नंबर जारी किया, जिससे आम नागरिक सीधे इस आंदोलन से जुड़ सकते हैं।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर #VoteChori और #लोकतंत्र_बचाओ जैसे हैशटैग के साथ भारी ट्रेंड शुरू हुआ।
4. चुनाव आयोग की सख्त प्रतिक्रिया
चुनाव आयोग (ECI) ने राहुल गांधी को नोटिस भेजा।
आयोग ने कहा — “या तो अपने आरोपों को साबित करने के लिए शपथपत्र दें या फिर सार्वजनिक रूप से माफी मांगें।”
उन्हें 10 दिनों का समय दिया गया कि वे प्रमाण के साथ सभी मतदाता सूची की गड़बड़ियों का विवरण पेश करें।
ECI ने यह भी चेतावनी दी कि बिना सबूत के ऐसे आरोप चुनावी प्रणाली की साख को नुकसान पहुंचाते हैं।
5. राहुल गांधी का जवाब
राहुल ने कहा कि वे किसी दबाव में आकर माफी नहीं मांगेंगे।
उनका कहना है कि “यह लड़ाई संविधान और जनता के अधिकारों के लिए है, मैं पीछे नहीं हटूँगा।”
उन्होंने लोगों से अपील की कि वे बड़े पैमाने पर आंदोलन में शामिल हों।
6. सड़क पर संघर्ष
दिल्ली में चुनाव आयोग के मुख्यालय के बाहर इंडिया ब्लॉक (विपक्षी गठबंधन) के नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में जमा हुए।
मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव जैसे नेता मौजूद थे।
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की, जिसके बाद कई नेताओं को हिरासत में लिया गया, जिनमें राहुल गांधी भी शामिल थे।
7. राज्यों में विरोध प्रदर्शन
पंजाब में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ईसीआई कार्यालय के बाहर धरना दिया।
महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव) और एनसीपी (शरद पवार) ने मिलकर मार्च निकाला।
तमिलनाडु में अभिनेता-राजनीतिज्ञ विजय ने अपने समर्थकों के साथ रैली निकाली और राहुल गांधी के समर्थन में भाषण दिया।
8. नेताओं के बयान
अमरिंदर सिंह राजा वारिंग (पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष): “राहुल गांधी के पास ठोस सबूत हैं, लाखों वोटरों के नाम बिना कारण हटाए गए।”
रेवंत रेड्डी (तेलंगाना CM): “यह सिर्फ राहुल गांधी की लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे भारत के लोकतंत्र की लड़ाई है।”
विजय (TVK प्रमुख): “निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र का आधार हैं, और जो भी इसे छेड़ेगा, हम उसका विरोध करेंगे।”
9. सोशल मीडिया और जनता की भागीदारी
ट्विटर/X, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर वीडियो और फोटो वायरल हुए, जिनमें लोगों को अपने नाम वोटर लिस्ट में न मिलने की शिकायत करते देखा गया।
हजारों लोगों ने मिस्ड कॉल देकर अभियान से जुड़ने का दावा किया।
कई जगह युवाओं और छात्रों ने सड़क पर “लोकतंत्र बचाओ” रैलियां कीं।
10. चुनाव आयोग की सफाई
ECI ने प्रेस रिलीज जारी कर कहा कि मतदाता सूची पूरी पारदर्शिता से तैयार की जाती है।
आयोग ने दावा किया कि सभी राजनीतिक दलों को समय-समय पर वोटर लिस्ट की समीक्षा का मौका दिया जाता है।
आयोग ने यह भी कहा कि अगर किसी को गड़बड़ी मिलती है, तो वह फॉर्म-6 और फॉर्म-7 के जरिए आपत्ति दर्ज करा सकता है।
11. कानूनी लड़ाई की तैयारी
कांग्रेस ने वरिष्ठ वकीलों की एक टीम बनाई है जो मतदाता सूची के रिकॉर्ड और आंकड़ों का विश्लेषण कर रही है।
पार्टी जल्द ही हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकती है।
बीजेपी ने इसे “चुनावी हार का बहाना” बताते हुए खारिज कर दिया।
12. जनता की राय बंटी हुई
कुछ लोग मानते हैं कि राहुल गांधी का मुद्दा सही है और जांच होनी चाहिए।
वहीं कुछ लोग इसे सिर्फ राजनीतिक स्टंट मानते हैं।
सोशल मीडिया पर बहस जारी है, जिसमें दोनों पक्षों के समर्थक सक्रिय हैं।
13. मीडिया कवरेज
NDTV, Aaj Tak, ABP News, Times Now ने लाइव कवरेज दी।
BBC और Reuters जैसे विदेशी मीडिया ने भी इसे भारत में लोकतंत्र और पारदर्शिता की बहस से जोड़ा।
अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों ने कहा कि भारत के चुनावों की पारदर्शिता पर अब वैश्विक स्तर पर सवाल उठेंगे।
14. आगे की संभावनाएँ
अगर कांग्रेस पुख्ता सबूत पेश करती है तो चुनाव आयोग को वोटर लिस्ट की ऑडिट करनी पड़ सकती है।
अगर सबूत नहीं मिलते, तो विपक्ष की विश्वसनीयता पर असर पड़ सकता है।
यह विवाद आने वाले विधानसभा चुनावों और 2029 के लोकसभा चुनाव के माहौल को प्रभावित कर सकता है।
“वोट चोरी” विवाद केवल एक चुनावी मुद्दा नहीं है, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र, चुनाव आयोग की साख और मतदाता अधिकारों से जुड़ा बड़ा सवाल बन गया है। अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि आने वाले दिनों में यह लड़ाई किस दिशा में जाएगी — क्या सबूत सामने आएंगे या यह सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी बनकर रह जाएगा।